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🌹हमारे राम🌹

🙏🌹*हमारे राम*🌹🙏 *राम* शब्द में दो अर्थ व्यंजित हैं। सुखद होना और ठहर जाना। अपने मार्ग से भटका हुआ कोई क्लांत पथिक किसी सुरम्य स्थान को देखकर ठहर जाता है। हमने सुखद ठहराव का अर्थ देने वाले जितने भी शब्द गढ़े, सभी में *राम* अंतर्निहित है, यथा *आराम, विराम, विश्राम, अभिराम, उपराम, ग्राम* जो *रमने* के लिए *विवश* कर दे, वह *राम* जीवन की आपाधापी में पड़ा *अशांत* मन जिस आनंददायक *गंतव्य* की सतत तलाश में है, वह गंतव्य है *राम* भारतीय मन हर स्थिति में *राम* को *साक्षी* बनाने का आदी है। दुःख में *हे राम*, *पीड़ा* में *ऐ राम*, *लज्जा* में *हाय राम*, *अशुभ* में *अरे राम राम*,  *अभिवादन* में *राम राम*, *शपथ* में *रामदुहाई*, *अज्ञानता* में *राम जाने*, *अनिश्चितता* में *राम भरोसे*, *अचूकता* के लिए *रामबाण*, मृत्यु के लिए *रामनाम सत्य*, *सुशासन* के लिए *रामराज्य* जैसी अभिव्यक्तियां पग-पग पर *राम* को साथ खड़ा करतीं हैं। *राम* भी इतने सरल हैं कि हर जगह खड़े हो जाते हैं। हर भारतीय उन पर अपना अधिकार मानता है। जिसका कोई नहीं उसके लिए राम हैं- *निर्बल के बल राम*। असंख्य बार देखी सुनी पढ़ी जा चुकी *र...

नमामि देवी नर्मदे...

नर्मदा ❤️ मैं नर्मदा हूं। जब गंगा नहीं थी , तब भी मैं थी। जब हिमालय नहीं था , तभी भी मै थी। मेरे किनारों पर नागर सभ्यता का विकास नहीं हुआ। मेरे दोनों किनारों पर तो दंडकारण्य के घने जंगलों की भरमार थी। इसी के कारण आर्य मुझ तक नहीं पहुंच सके। मैं अनेक वर्षों तक आर्यावर्त की सीमा रेखा बनी रही। उन दिनों मेरे तट पर उत्तरापथ समाप्त होता था और दक्षिणापथ शुरू होता था। मेरे तट पर मोहनजोदड़ो जैसी नागर संस्कृति नहीं रही, लेकिन एक आरण्यक संस्कृति अवश्य रही। मेरे तटवर्ती वनों मे मार्कंडेय, कपिल, भृगु , जमदग्नि आदि अनेक ऋषियों के आश्रम रहे । यहाँ की यज्ञवेदियों का धुआँ आकाश में मंडराता था । ऋषियों का कहना था कि तपस्या तो बस नर्मदा तट पर ही करनी चाहिए।  इन्हीं ऋषियों में से एक ने मेरा नाम रखा, " रेवा "। रेव् यानी कूदना। उन्होंने मुझे चट्टानों में कूदते फांदते देखा तो मेरा नाम "रेवा" रखा। एक अन्य ऋषि ने मेरा नाम "नर्मदा " रखा ।"नर्म" यानी आनंद । आनंद देनेवाली नदी। मैं भारत की सात प्रमुख नदियों में से हूं । गंगा के बाद मेरा ही महत्व है । पुराणों में जितना मुझ पर ...

हिन्दू कौन!?

*हिन्दू कौन है , क्या आप जानते है, नहीं जानते हैं तो जी मैने पढा उसे पढे और अगर, कोई  त्रुटि हो तो अवगत कराये ‐------------  *" हिन्दू " शब्द की खोज -*  *" हीनं दुष्यति इति हिन्दूः से हुई है ।”* *अर्थात : जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं ।* *' हिन्दू ' शब्द, करोड़ों वर्ष प्राचीन, संस्कृत शब्द से है !* यदि संस्कृत के इस शब्द का सन्धि विछेदन करें तो पायेंगे ....  *हीन + दू = हीन भावना + से दूर*  *अर्थात : जो हीन भावना या दुर्भावना से दूर रहे , मुक्त रहे , वो हिन्दू है !* हमें बार - बार, सदा झूठ ही बतलाया जाता है कि हिन्दू शब्द मुगलों ने हमें दिया , जो " सिंधु " से " हिन्दू " हुआ l *हिन्दू शब्द की वेद से ही उत्पत्ति है !* *जानिए , कहाँ से आया हिन्दू शब्द और कैसे हुई इसकी उत्पत्ति ?* कुछ लोग यह कहते हैं कि हिन्दू शब्द सिंधु से बना है औऱ यह फारसी शब्द है । परंतु ऐसा कुछ नहीं है ! ये केवल झुठ फ़ैलाया जाता है । हमारे " वेदों " और " पुराणों " में हिन्दू शब्द का उल्लेख मिलता है । आज हम आपको बता रहे हैं कि हमें हिन...

बस एक पहर ही बाकी है।*

*तीन   पहर   तो   बीत   गये,* *बस  एक  पहर ही बाकी है।* *जीवन हाथों से फिसल गया,* *बस  खाली  मुट्ठी  बाकी  है।* *सब  कुछ पाया इस जीवन में,* *फिर   भी   इच्छाएं  बाकी  हैं* *दुनिया  से  हमने   क्या  पाया,* *यह लेखा - जोखा बहुत हुआ,* *इस  जग  ने हमसे क्या पाया,* *बस   ये   गणनाएं   बाकी  हैं।* *इस भाग-दौड़  की  दुनिया में* *हमको इक पल का होश नहीं,* *वैसे   तो  जीवन  सुखमय  है,* *पर फिर भी क्यों संतोष नहीं !* *क्या   यूं   ही  जीवन  बीतेगा,* *क्या  यूं  ही  सांसें बंद होंगी ?* *औरों  की  पीड़ा  देख  समझ* *कब अपनी आंखें नम होंगी ?* *मन  के  अंतर  में  कहीं  छिपे* *इस  प्रश्न  का  उत्तर बाकी है।* *मेरी    खुशियां,   मेरे  सपने* *मेरे     बच्चे...

अपने स्वामी जी

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स्वामी विवेकानन्द का सम्पूर्ण जीवन जन्म इन्होंने 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में जन्म लिया था। बचपन में इन्हें नरेन्द्र नाथ दत्त के नाम से जाना जाता था।इनके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध अधिवक्ता थे और माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों वाली महिला थीं। इन्होंने अपने घर-परिवार को 25 वर्ष की उम्र में त्यागकर एक साधु का जीवन जीने का निश्चय किया। बचपन बालक नरेंद्र बचपन से ही प्रखर बुद्धि के थे। अपने दोस्तों के साथ मिलकर खूब शरारतें भी किया करते थे। धार्मिक एवं आध्यात्मिक वातावरण में पल रहे बालक नरेन्द्र के मन में धर्म एवं अध्यात्म के संस्कार बचपन से पड़ रहे थे । उनके जीवन की एक घटना में जब वे एक दिन अपने दोस्तों के साथ सबसे अधिक समय तक ध्यान लगाए रखने का खेल खेल रहे थे, तभी वहां एक कोबरा आ गया।सारे दोस्त तो भाग गए लेकिन नरेन्द्र वहीं पर ध्यान में मग्न रहे। इसके  बाद जो हुआ वो आश्चर्य से भरा हुआ था। सर्प बालक नरेंद्र को देखता रहा। फिर देखते-देखते अपने आप ही दूर चला गया। माता-पिता के दिए सं...

*हिन्दुओ सावधान! नकली शंकराचार्य से बचें*

*हिन्दुओ सावधान! नकली शंकराचार्य से बचें* *मीडिया में दिखाई देने वाले नकली शंकराचार्य की लिस्ट* १.अधोक्षजानंद(पूरी मठ पर अवैध कब्जा करने की चेष्टा करने वाला) २.वासुदेवानंद (कथित हिंदुत्ववादी सरकार द्वारा राममंदिर ट्रस्ट में लिया गया,ज्योतिर्मठ पर अवैध कब्जा करने वाला) ३.अच्युतानंद ४.माधवाश्रम ५.राजराजेश्वराश्रम ६. विश्वदेवानंदतीर्थ ७.नरेंद्रानंद ८.नागेंद्राश्रम ९. ओमकारानंद १०.नृसिंह भारती इन दस को मिलाकर कुल 282 के आसपास नकली शंकराचार्य घूम रहे है। *समस्त भारतवर्ष की जानकारी हेतु* *शंकराचार्य केवल चार ही है* - पूर्व गोवर्धन मठ - श्रीमज्जगतगुरु शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती जी - पश्चिम शारदा मठ - श्रीमज्जगतगुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी - उत्तर जोशी मठ - श्रीमज्जगतगुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी - दक्षिण श्रृंगेरी मठ - श्री भारती तीर्थ महास्वामी जी आज कल *सेकड़ो फर्जी शंकराचार्य*  अपने नाम के आगे शंकराचार्य लिख के घूम रहे है तो बच के रहे इन पाखंडियो से मुख्य 4 पीठ के 4 शंकराचार्य ही है इनके अलावा कोई पांचवे शंकराचार्य नहीं है, अगर कोई ऐसा दावा करता है या करती है तो उस प...

प्रभु, बुढ़ापा ऐसा देना*

*प्रभु, बुढ़ापा ऐसा देना* 👇👇👇👇 *प्रभु, बुढ़ापा ऐसा देना।*  *कि हलवा पूरी गटक सकूं*   *और चबा सकूं मैं चना चबैना।।*  *प्रभु, बुढ़ापा ऐसा देना।*  💐 *मेरे तन की शुगर ना बढ़े,*  *रहे मिठास जुबाँ की कायम*।  *तन का लोहा ठीक रहे*  *और मन में लोहा लेने का दम*।। 💐 *चलूँ हमेशा ही मैं सीधा,* *मेरी कमर नहीं झुक जाए*।  *यारों के संग, हंसी ठिठौली,* *मिलना जुलना ना रुक जाए,* 💐  *जियूं मस्त मौला बन कर मैं,*  *काटूँ अपने दिन और रैना*    *प्रभु, बुढ़ापा ऐसा देना*।  💐  *भले आँख पर चश्मा हो*    *पर टी वी, अखबार पढ़ सकूं।*  *पास हों या फिर दूर रहें*  *मित्रों से मैं बात कर सकूँ*।।  💐 *चाट पकोड़ी, पानी पूरी,* *खा पाऊं, लेकर चटखारे*   *बीमारी और कमजोरी,*  *फटक न पाएं पास हमारे* 💐  *सावन सूखा, हरा न भादों* , *रहे हमेशा मन में चैना*   *प्रभु, बुढ़ापा ऐसा देना*। 💐  *मेरे जीवन की शैली पर ,*   *नहीं कोई प्रतिबंध लगाए।*   *जीवन-साथी साथ रहे*     *संग संग हम द...