बस एक पहर ही बाकी है।*

*तीन   पहर   तो   बीत   गये,*
*बस  एक  पहर ही बाकी है।*
*जीवन हाथों से फिसल गया,*
*बस  खाली  मुट्ठी  बाकी  है।*

*सब  कुछ पाया इस जीवन में,*
*फिर   भी   इच्छाएं  बाकी  हैं*
*दुनिया  से  हमने   क्या  पाया,*
*यह लेखा - जोखा बहुत हुआ,*
*इस  जग  ने हमसे क्या पाया,*
*बस   ये   गणनाएं   बाकी  हैं।*

*इस भाग-दौड़  की  दुनिया में*
*हमको इक पल का होश नहीं,*
*वैसे   तो  जीवन  सुखमय  है,*
*पर फिर भी क्यों संतोष नहीं !*
*क्या   यूं   ही  जीवन  बीतेगा,*
*क्या  यूं  ही  सांसें बंद होंगी ?*
*औरों  की  पीड़ा  देख  समझ*
*कब अपनी आंखें नम होंगी ?*
*मन  के  अंतर  में  कहीं  छिपे*
*इस  प्रश्न  का  उत्तर बाकी है।*

*मेरी    खुशियां,   मेरे  सपने*
*मेरे     बच्चे,     मेरे    अपने*
*यह  करते - करते  शाम हुई*
*इससे  पहले  तम  छा जाए*
*इससे  पहले  कि  शाम ढले*
*कुछ  दूर   परायी   बस्ती में*
*इक  दीप  जलाना बाकी है।*
*तीन   पहर   तो   बीत   गये,*
*बस  एक पहर ही बाकी  है।*
      🙏🙏🙏

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